लाचार कौन - A Poetry On Natural Demolish



 









हर जीव में एक चाह होती है |
हर जीव की भी अपनी एक राह होती है ||

तुम सोचते हो एक मेरा ही जीवन है |
मै ही हूँ, बस मै जो चाहे सो करलू ||
पर सोच लो बंधू कुछ भी न अमर है |
क्यों भूलते हो की ये तुम्हारा न शहर है || 

सींचा है किसी ने इसे अपने पसीनो से |
आश्रा बनेगा ये किसी का अपने डालो से ||
तुम्हारा क्या लगा है इसमें की तुम जिद पे अड़े हो |
हठ छोर दो बंधू ये तुम्हारा न करम है ||

तुम बोलते हो इसके तो जुबान ही नहीं |
तुम दौड़ते हो इसके हाथ पांव भी नहीं ||
फिर भी ऐ सितमगढ़ तुम्हे ये प्राण है देता |
फिर भी तुम हो हैवान इसे काट है देता ||

ये मरके भी तुम्हारे काम आते है |
तुम जीते जी इसे जलाए जाते हो ||
 वन्य-जीवो की भी अपनी एक आह होती है |
हर जीव की भी अपनी एक राह होती है ||

-चंचल साक्षी 
2nd Jan, 2009

Comments

soyrabindra said…
that's unbelievable!!
Chanchal Sakshi said…
Thank you soyrabindra...

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