!! अच्छाई-बुराई !! A Poetry About People's Thought



 







माँ से सुना था |
किताबो में यंही पढ़ा था | 
बुराई से डरो |
बुरा मत करो |

माँ का कहा भी भूल गए |
किताबो को भी झुठला दिया |
जाने कब, कैसे ?
सबने एक तकिया-कलाम अपना लिया |

 समय अब बदल गया है |
सोच भी न वो रहा |
क्या लड़कपन क्या बड़प्पन ?
एक सा सब हो रहा है |

सच तो अब सामने आई है |
दिन-रात की यंही लड़ाई है |
तुम दिन हो तो मै रात हूँ |
लोगो की यंही दुहाई है |

खुश होते है कुछ लोग |
ऐसा कहते है कुछ लोग |
तुम अछाई हो तो मै बुराई हूँ |
जपते रहते है कुछ लोग |

कटु यह सत्य है |
करवा तो होगा |
अछाई-बुराई,  
जुड़ा तो होगा |
कुछ अछाई के पथिक है |
कुछ बुराई के पथिक है |

सवाल फिर भी बांकी है ?
क्या यह संतुलन है?
क्या यह उचित है ?
-चंचल साक्षी 
May 29th, 2012




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