नजराना - Poetry















 नजराना क्या लिखू-
मै तेरे प्यार का 
रास्ता जोहती हूँ 
तेरे ऐतवार का 
तुम ओ जालिम 
मुझे भुलाये बैठे हो
जाने किसका आँगन-
सजाये बैठे हो
दिल में सवालो की
झरिया उमरती-घुमारती
मन मेरा फिर भी
कुम्हलाये बैठी है
एक नजर देख तो जाते
इतने बेगाने हम नहीं
किस ओट में-
हमदम शर्माए बैठे हो
जिस डगर से गुजरे थे
पास खरी थी मै
कुछ बोल तो जाते क्यों-
घवराये बैठे हो
आशिकी-दीवानगी
कहने की-बात नहीं 
हम अपना सबकुछ-
गवाएं बैठे है.
नजराना क्या लिखू-
गम-ए यार का
रास्ता जोहती हूँ 
तेरे प्यार का
-चंचल साक्षी
04-Sep, 2012

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