महफिल-ए वीबी के चर्चे।

महफिल-ए वीबी के चर्चे। 

जब घर में एक कामवाली आती है तो श्रीमान जनाब का ख़ुशी संभाले नही संभालता। उसके द्वारा बनाए गए खाना बेहद स्वादिस्ट लगने लगता है। तन्खाह के साथ साथ उसे तारीफे भी हासिल होती है। वही श्रीमान जनाब बीवी लाते है तो नखरे आसमान छुने लग जाता है। उनके अन्दर का जज साहब अचानक जाग उठता है। फिर शुरु हो जाता है मीनमेख निकलना, नमक कम तेल ज्यादा इत्यादी। इन्हें एक दिन भी पत्नी महोदया बनकर रहना पर जाये तो होश ठिकाने आ जाये। इसके वाबजुद जनाब पति महोदय फ़ब्तिया कसने को अपना आदत बना लेते है। जहा-तहा पत्नी लीला और चर्चा करते पाए जाते है। अजी जनाब मनोरंजन की ऐसा भी क्या लत की आपने अपनी संगिनी तक को नही बख्शा।

ऐसे में अगर दो-चार दोस्त मिल जाये तो महफ़िल जम ही जाता है। महफ़िल जमी तो बातें भी होगी? पहले तो रोजमर्रा के काम-धंधे फिर फलां का फलां से अफेयर और दुनिया भर की बातें। जब हर बात अपनी मंजिल तक पहुच गयी तब क्या? सबके घर को भेद लिया रह गया तो सिर्फ अपना घर। घर में बांकी सब तो अपने है, माँ-बाप, भाई-बहन। सिर्फ एक प्राणी है जो बाहर से आई है-वीबी। अब वीबी के नाम पर जनाब दिल हल्का करेंगे। वीबी जो आजकल महफिलो का मुद्दा, सायरो की शायरी, पतियों का भरास और सोसल साइट्स का हाईलाइट बनी हुई है।

बैक टू द पॉइंट, फिर शुरु हुआ महफ़िल-ए-वीबी के गुणगान। अजी गुणगान भी ऐसा की बोतल भले ही खत्म हो गया हो पर शब्दवान खत्म नही हुआ। "वीबी ने जिना मुस्किल कर दिया है", ये सबसे समान्य वाक्य है। वैसे आप तो खुद भुक्तभोगी है पर इस का बयाँ करते चलें।

जाम से जाम टकराया और दिल की बात जुबान पर आ ही गयी। दिल में जो भी आया तथाकथित दोस्त को बोल दिया। यार बहुत चिक-चिक करती है, सिगरेट न पीया करो, शराब को तो हाथ भी मत लगाना, घर जल्दी आया करो। दोस्त ने जबाब दिया, "हाँ यार अपना भी कुछ यही हाल है"। बहुत पकाति हैं, घर जाने का मन नही करता है।

ये तो मात्र एक उदाहरन है। बल्कि सही मायने में घर हो या ऑफिस हर पति महोदय के जुबान पर अपनी महोदया के लिए आह ही होती है। सायद आपको हैरानी ना हो यह जानकर कि 60-65 साल का एक बुजुर्ग अपने स्टाफ से अपनी वीबी की बुराई करता है। शब्दों से यह दर्शाता है की अपनी महोदया को धुल्मात्र समझता है। ऐसा प्रतीत होता है की अगर दो अन्जान व्यक्ति भी साथ में मिल जाये तो भी अपनी वीबी की बुराई करने से बाज नही आएंगे।

मस्ती-मजाक अपनी जगह है पर कभी आपने इसकी गभीरता के बारे में सोचा है? ऐसा होता क्यू है? कुछ लोगो को अन्यो से कोई सरोकार नही होता है, ऐसे लोग नही होने के बराबर है। परन्तु ये सवाल उनसे है जिन्हें दुसरे से फर्क परता है।

मैं चर्चा कर रही थी विबियो पर कसे जाने वाले फ़ब्तियो पर। अच्छी बात है जनाब आप अपना मतोजागर करें, बेसक आपको इसक हक़ है, पर इससे क्या हासिल होगा यह भी सोच ले। वीबी जो एक दिन किसी की बेटी के रूप में लाडली थी। वीबी जो पहले आपकी प्रेमिका थी। आज आपके लिए पकाऊ हो गयी है। एक लड़की जिसके लिए आप घंटो धुप में घरे होकर टकटकी लगाए देखा करते थे। जिसकी एक झलक पाने के लिए कितनी जद्दोजहद करते थे। उससे दोस्ती के लिए क्या-क्या किया था। उसके पास रहने की हरेक कोशिस करते थे। सोयी-जगी आंखो से उसके सपने देखा करते थे। फिर कायनात ने आपका साथ दिया वो आपकी दुल्हन बन गयी। आप उस दिन सबसे खुशनसीब थे, ख़ुशी आपके धरकने बढ़ा रही थी। दिन गुजरा, महीने गुजरे और गुजर गया साल। साथ ही आपने बना लिया बुरा हाल। आखिर क्यों?

हमारे एक मित्र है जो शादिसुदा है। वे दुसरे मित्र, जीनकी शादी हो रही थी, से बोले, "एक-दो महीने बाद तुम्हे कुछ अच्छा नही लगेगा"। ये तो कुछ ज्यादा हो गया। परन्तु हकीकत यही हैं कि अधिकतर पुरुषो की यही मानसिकता होती है। आप अगर ध्यान दे तो 5-7 उदाहर आपके अपने सर्कल में मिल जायेंगे। आजकल फेसबुक पे अक्सर ऐसा दीखता है- "got married to_____, कुछ शादी के तस्वीर भी साथ में"। वही एक-दो महीने बाद वीबी के उपर शेरो-शायरी और कटाक्ष-कविताये। जाहिर है ये सब तो चलता रहेगा। परन्तु मैं पुरुषो की मानसिकता समझना चाहती थी। आखिर वे ऐसा क्यू करते है? जहां तक मैं समझ पाई हूँ अभीतक,शायद निम्न कारणों से वे ऐसा सोचते है-
१. जिम्मेदारी रहित ख़ुशी चाहिए, अर्थात प्यार मिले परन्तु बिना किसी commitment के या जिम्मेदारी के। 
२. स्वार्थपूर्ति में ज्यादा यकीन रखते है, अर्थात अपनी ख़ुशी, अपना मूड और अपने लाइफस्टाइल को ज्यादा तवज्जो देते है। 
३. वीबी को जीवन साथी कम बल्कि उपलब्धि ज्यादा समझते है। 

वैसे तो कई कारण और भी है परन्तु उपरोक्त कारन मुख्य कारण हो सकता है। जैसा की मानव स्वभाव है, जो वस्तु हमे हाँसिल नही होता है, उसका लगन, लालच और कीमत हमारे नजर में अधिक होती है। वही वस्तु हमे जब हासिल हो जाये तो उसका कीमत हमारे नजर में कम हो जाता है। परन्तु हम इन्सानो में इतनी अक्ल तो है कि व्यक्ति और वस्तु में फर्क समझ सकें। यंहा बात पुरुषों की है, और पुरुष खासकर पति महोदयो की तो बात ही निराली है। शायद उन्हें वीबी भी उपलब्धि लगता हो! 

मेरा उद्देश्य सिर्फ इतना है की आप और हम कुछ ऐसा करें कि सबकी मानसिकता बदले। ताकि पति महोदय जो हम में से किसी का भाई, किसी का चाचा या रिश्तेदार है, वो अपनी महोदया की बात को सकारात्मक तरीके से ले, न की ताने समझे। जनाब जरुरत पड़ने पर अपनी महोदया से अपने मन की बात बताये, अपनी समस्याएँ बताए। सोच के देखे, जिस प्यार ने उसे आपकी पत्नी बनाया उसी प्यार में वह आपकी बात नही समझेगी? जितना जतन आपने इस प्यार को पाने के लिए किया था उसका एक तिहाई इस रिश्ते को बनाने के लिए कर ही सकते है। हर संभव कोशिस करें, वो प्यार, वो नयापन, वो जज्बात बरकरार रखने की, क्योंकि अगर आप एक कोशिस करेंगे तो वो चार करेगी। अपने रिश्ते को झेले मत बल्कि पुरे जोश-ओ-जूनून से जिए। क्योंकि वो कहते है ना जिंदगी मिलेगी ना दुबारा। 

-चंचल साक्षी 
06/09/13

Comments

Neha said…
Beautiful piece chanchal.. Loved it totally..
Chanchal Sakshi said…
thank you so much Manohar
Chanchal Sakshi said…
Thanks dear Neha..your words mean a lot to me...
Anonymous said…
bhaw aur abhsha ka prawah accha hai. suspast aur saral hai. halanki spelling me kuch galtiyan hain jinhe sudharna chahiye.

Aur sab se khas baat- "yah wyangya" nahi hai. sidhi sacchi abhiwyakti hai. atah ise wyangya ki srinkhala me na rakhen. yah "Chayawad" hai. aur Mahadevi Varma ki lekhn-shaili se kisi had tak mel khati hai (padhen "Ghisa").- SantoshJha
Chanchal Sakshi said…
Thanks you so much Santosh Jha. Specially for this line " "yah wyangya" nahi hai. sidhi sacchi abhiwyakti hai".

I'll work on spelling part...Mahadevi Verma meri inspiration rhi hai par apne meri writing style ko un jaisa samjha ye mere liye bahut badi bat...thank you so much.

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