कहाँ है मेरा घर - Poetry
काम एक बहना था!
चली ट्रेन से घर को,
सैकरो मिलो दूर,
छोड़कर हाई प्रोफाइल सर्किल को,
बड़े-बड़े गाडियों के भीड़ से दूर,
ट्रेन रूक चला मंजिल पर,
मेरी मंजिल फिर भी बांकी थी,
मै तो चली थी घर के सफ़र पर!
एक और यात्रा शुरु हुआ,
घर के लिए,
इस बार जरिया 'बस' था,
दिल में कस्मोकस था,
एक सवाल जेहन में,
बार-बार आया,
कहाँ है मेरा घर?
हाँ कहाँ है घर!
ये सवाल नही जीवन है,
जीती आई हूँ जिसे,
मैं वर्षो से,
पूछती आई हूँ सबसे,
किसी ने जवाब नही दिया!
तभी सवाल अभी भी बांकी है,
कहाँ है मेरा घर?
घर, जहाँ मैं जन्मी थी,
घर, जो सब कहते है मेरा है,
जिसे उसने छिना है,
घर जो अभी रहती हूँ,
घर, जंहा सबको छोड़ जाना है,
हमेशा-हमेशा के लिए!
-चंचल साक्षी
01-02-14
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