मैं रुपया हूँ - Poetry
फिर भी मेरे लीए जान लेते और दे भी देते है
मैंने अनगिनत अमीरजादों के पाप धोये है
असंख्य नेताओं के कालिख़ मिटाये है
बड़े-बड़े काले धंधों से मुझे गुज़ारा गया है
पग-पग पर हेरा-फेरी में मुझे उतारा गया है
भले ही मैं कागज का टुकड़ा हूँ
लोगो के इरादे का मैं मुखड़ा हूँ
कहानी मेरी हज़ारो साल पुरानी है
जैसे पुरानी नानी की कहानी है
निर्माता ने बुनियादी चीजो के लिए मुझे बनाया था
लोगो ने खुली बाँहो से मुझे अपनाया था
पर आज मैं हर ताले की चाभी हूँ
हाँ मैं जन जन पर हावी हूँ
आज जरुरत की जगह लालच छाया है
फिर क्यूँ मुझे कहते मोह-माया है
भले दुनिया विधाता ने बनाया हैं
प्रकृति के कण-कण को प्यार से सजाया हैं
पर दुनियाभर को मैंने ईशारे पे नचाया हैं
क्योंकि मैं रुपया हूँ :)
-चंचल साक्षी
18/06/2015
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