दर्द-ए-बयाँ - A Poetry On Emotion


















यूँ न हँसो यारो 
मेरे दर्द-ए-बयाँ पे 
हज़ारो चोट खाकर ही 
हमने ये हुनर पाई है 

इस दर्द-ए-दिल का अब क्या करुँ 
लाख बाधा पार कर जिसे जीत न मिली 

यूँ ही नाउम्मीद नही हूँ मैं 
मेरे अश्क़ मेरे हाला के बेहतर गबाह हैं 

ये इश्क़ भी यारो क्या अजीब चीज है 
न मिले तो बावड़ा मिल जाये तो बेकार कर देती हैं 
-चंचल साक्षी 

Comments

Popular Posts