घुटन - Poetry
आता नही मज़ा
घुट-घुट कर जीने में
मेरी परछाई भी मुझसे
सवाल पूछने लगे
लाख कोशिश करू
तूफ़ान उठने लगे
सब फ़ीका-फ़ीका लगने लगा
रिस्तो से भरोषा अब उठने लगा
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दिल करे हर बंधन तोड़ दू
तन्हाई से फिर नाता जोड़ लू
कुछ वक़्त मिले इन स्वांग से
उन्मुक्त हवा में सांस लू
और गम का दामन छोड़ दू
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किया-धरा सब धूल में मिल गया
मनो जैसे रेत का महल बनाया हो
नासमझ दिल को मैंने लाख समझाया
फिर भी बावड़ी ने इश्क़ फ़रमाया
-चंचल साक्षी
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