घुटन - Poetry





















इन दिनों दर्द हैं सीने में 
आता नही मज़ा 
घुट-घुट कर जीने में 
मेरी परछाई भी मुझसे 
सवाल पूछने लगे 
लाख कोशिश करू 
तूफ़ान उठने लगे 
सब फ़ीका-फ़ीका लगने लगा 
रिस्तो से भरोषा अब उठने लगा
 .........x.........x............x.......


दिल करे हर बंधन तोड़ दू 
तन्हाई से फिर नाता जोड़ लू 
कुछ वक़्त मिले इन स्वांग से
उन्मुक्त हवा में सांस लू 
और गम का दामन छोड़ दू 
......x.......x..........x.........


किया-धरा सब धूल में मिल गया 
मनो जैसे रेत का महल बनाया हो 
नासमझ दिल को मैंने लाख समझाया 
फिर भी बावड़ी ने इश्क़ फ़रमाया 
-चंचल साक्षी 

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