मौसम-ए-हिंदुस्तान - Poetry




एक बार हो चुका हैं
टुकड़े-टुकड़े 
दिल-ए -जां हिन्दुस्तांन का 
बँट चुकी है धरती शरहदों में 
लगता है फिर भी नहीं बदला 
मौसम-ए-हिंदुस्तान का 

जाने कितने माँए रोइ 
कितनो का घर उजड़ा था 
हर ओर तोड़-फोड़ आगजनी 
हर चेहरा नफ़रत का मुखड़ा था 

वर्षो बीत गए 
बदल गया है बहुत कुछ 
जो बदलना था
बेहद जरुरी 
वो सोच नहीं बदली है 

हिन्दु-मुस्लिम, मंदिर-मस्ज़िद 
अभी भी जारी हैं 
आस्था के प्रतीक ही 
अब आस्था पे भाड़ी हैं 
-चंचल साक्षी

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