चक्रेश मिश्र की कविता "दीप बनकर कौन आये"





शाम के गहरे रंगों से
रात का पैगाम आये |
हारकर जो सो गया मैं
दीप बनकर कौन आये |

मैं सुबह की आग हूँ
सूर्य का उच्छवास हूँ |
तिमिर का संहार करता 
मैं समय की आस हूँ |

आज हो सकता हूँ चिंतित
आज हो सकता हूँ विचलित |
लौ जो देखो फड़फड़ाती
न मान मेरी मृत्यु निश्चित |

सुबह होगी कल यहीं पर
यह भरोसा है हमारा |
न सत्य हारे फिर कहीं पर
जुनून ऐसा है हमारा |

नियति के काले रंगों से
काल बनकर मैं लड़ूंगा |
रात कितनी हो विकट पर
विजयी बनकर मैं रहूँगा |

तेरे मेरे हारे दिनों का
वही अपराजित ह्रदय हूँ |
अनजान पथ पर चल पड़ा जो
वही अपराजित ह्रदय हूँ |

एक कोशिश और करता
जयनाद की मधुर लय हूँ |
कल का अपराजित ह्रदय हूँ
आज भी अपराजित ह्रदय हूँ |

-चक्रेश मिश्र "अनजान"

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